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"कालीबंगा: कुछ चित्र-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

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खदबद पकता था  
 
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खीचडा
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खीचड़ा
 
कुछ हाथ थे  
 
कुछ हाथ थे  
 
जो परोसते थे।  
 
जो परोसते थे।  

18:21, 15 अप्रैल 2010 का अवतरण

 
इन ईंटों के
ठीक बीच में पड़ी
यह काली मिट्टी नहीं
राख है चूल्हे की
जो चेतन थी कभी

चूल्हे पर
खदबद पकता था
खीचड़ा
कुछ हाथ थे
जो परोसते थे।


राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा