भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कालीबंगा: कुछ चित्र-14 / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद }} {{KKCatKavita}} <poem> ऊँचे डूंगर सरीखे थेह…)
 
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
नमी पाकर
 
नमी पाकर
 
कुछ ही दिनों में
 
कुछ ही दिनों में
फ़ूट गया अंकुर
+
फूट गया अंकुर
  
 
सामने देखकर
 
सामने देखकर

18:49, 15 अप्रैल 2010 का अवतरण

ऊँचे
डूंगर सरीखे
थेहड़ तले
निकली थी हांडी

उसके नीचे
बचा हुआ था
उगने को हाँफ़ता बीज

नमी पाकर
कुछ ही दिनों में
फूट गया अंकुर

सामने देखकर
अनंत आकाश में
कद्रदान अन्न के।


राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा