भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"समर निंद्य है / भाग २ / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
छो |
||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
हो छिटक रही चिंगारी;<br><br> | हो छिटक रही चिंगारी;<br><br> | ||
− | आगामी विस्फोट काल के<br> | + | ::आगामी विस्फोट काल के<br> |
− | मुख पर दमक रहा हो;<br> | + | ::मुख पर दमक रहा हो;<br> |
− | इंगित में अंगार विवश<br> | + | ::इंगित में अंगार विवश<br> |
− | भावों के चमक रहा हो;<br><br> | + | ::भावों के चमक रहा हो;<br><br> |
पढ़कर भी संकेत सजग हों<br> | पढ़कर भी संकेत सजग हों<br> | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
आहुतियाँ बारी-बारी;<br><br> | आहुतियाँ बारी-बारी;<br><br> | ||
− | कभी नये शोषण से, कभी<br> | + | ::कभी नये शोषण से, कभी<br> |
− | उपेक्षा, कभी दमन से,<br> | + | ::उपेक्षा, कभी दमन से,<br> |
− | अपमानों से कभी, कभी<br> | + | ::अपमानों से कभी, कभी<br> |
− | शर-वेधक व्यंत्य-वचन से।<br><br> | + | ::शर-वेधक व्यंत्य-वचन से।<br><br> |
दबे हुए आवेग वहाँ यदि<br> | दबे हुए आवेग वहाँ यदि<br> | ||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
अन्यायी पर टूटें,<br><br> | अन्यायी पर टूटें,<br><br> | ||
− | कहो कौन दायी होगा<br> | + | ::कहो कौन दायी होगा<br> |
− | उस दारुण जगद्दहन का<br> | + | ::उस दारुण जगद्दहन का<br> |
− | अहंकार या घृणा? कौन<br> | + | ::अहंकार या घृणा? कौन<br> |
− | दोषी होगा उस रण का ?<br><br> | + | ::दोषी होगा उस रण का ?<br><br> |
तुम विषण्ण हो समझ<br> | तुम विषण्ण हो समझ<br> | ||
पंक्ति 40: | पंक्ति 40: | ||
बरसी थी अंबर से?<br><br> | बरसी थी अंबर से?<br><br> | ||
− | अथवा अकस्मात मिट्टि से<br> | + | ::अथवा अकस्मात मिट्टि से<br> |
− | फूटी थी यह ज्वाला ?<br> | + | ::फूटी थी यह ज्वाला ?<br> |
− | या मंत्रों के बल से जनमी<br> | + | ::या मंत्रों के बल से जनमी<br> |
− | थी यह शिखा कराला ?<br><br> | + | ::थी यह शिखा कराला ?<br><br> |
कुरुक्षेत्र से पूर्व नहीं क्या<br> | कुरुक्षेत्र से पूर्व नहीं क्या<br> | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 50: | ||
हृदय-हृदय में बलने ?<br><br> | हृदय-हृदय में बलने ?<br><br> | ||
− | शान्ति खोलकर खड्ग क्रान्ति का<br> | + | ::शान्ति खोलकर खड्ग क्रान्ति का<br> |
− | जब वर्जन करती है,<br> | + | ::जब वर्जन करती है,<br> |
− | तभी जान लो, किसी समर का<br> | + | ::तभी जान लो, किसी समर का<br> |
− | वह सर्जन करती है।<br><br> | + | ::वह सर्जन करती है।<br><br> |
शान्ति नहीं तब तक; जब तक<br> | शान्ति नहीं तब तक; जब तक<br> | ||
पंक्ति 60: | पंक्ति 60: | ||
नहीं किसी को कम हो।<br><br> | नहीं किसी को कम हो।<br><br> | ||
− | ऐसी शान्ति राज्य करती है<br> | + | ::ऐसी शान्ति राज्य करती है<br> |
− | तन पर नहीं हृदय पर,<br> | + | ::तन पर नहीं हृदय पर,<br> |
− | नर के ऊँचे विश्वासों पर,<br> | + | ::नर के ऊँचे विश्वासों पर,<br> |
− | श्रद्धा, भक्ति, प्रणय पर।<br><br> | + | ::श्रद्धा, भक्ति, प्रणय पर।<br><br> |
01:45, 1 अगस्त 2008 का अवतरण
अहंकार के साथ घृणा का
जहाँ द्वंद हो जारी;
ऊपर, शान्ति, तलातल में
हो छिटक रही चिंगारी;
- आगामी विस्फोट काल के
- मुख पर दमक रहा हो;
- इंगित में अंगार विवश
- भावों के चमक रहा हो;
- आगामी विस्फोट काल के
पढ़कर भी संकेत सजग हों
किन्तु, न सत्ताधारी;
दुर्मति और अनल में दें
आहुतियाँ बारी-बारी;
- कभी नये शोषण से, कभी
- उपेक्षा, कभी दमन से,
- अपमानों से कभी, कभी
- शर-वेधक व्यंत्य-वचन से।
- कभी नये शोषण से, कभी
दबे हुए आवेग वहाँ यदि
उबल किसी दिन फूटें,
संयम छोड़, काल बन मानव
अन्यायी पर टूटें,
- कहो कौन दायी होगा
- उस दारुण जगद्दहन का
- अहंकार या घृणा? कौन
- दोषी होगा उस रण का ?
- कहो कौन दायी होगा
तुम विषण्ण हो समझ
हुआ जगदाह तुम्हारे कर से।
सोचो तो, क्या अग्नि समर की
बरसी थी अंबर से?
- अथवा अकस्मात मिट्टि से
- फूटी थी यह ज्वाला ?
- या मंत्रों के बल से जनमी
- थी यह शिखा कराला ?
- अथवा अकस्मात मिट्टि से
कुरुक्षेत्र से पूर्व नहीं क्या
समर लगा था चलने ?
प्रतिहिंसा का दीप भयानक
हृदय-हृदय में बलने ?
- शान्ति खोलकर खड्ग क्रान्ति का
- जब वर्जन करती है,
- तभी जान लो, किसी समर का
- वह सर्जन करती है।
- शान्ति खोलकर खड्ग क्रान्ति का
शान्ति नहीं तब तक; जब तक
सुख-भाग न नर का सम हो,
नहीं किसी को बहुत अधिक हो,
नहीं किसी को कम हो।
- ऐसी शान्ति राज्य करती है
- तन पर नहीं हृदय पर,
- नर के ऊँचे विश्वासों पर,
- श्रद्धा, भक्ति, प्रणय पर।
- ऐसी शान्ति राज्य करती है