भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"समर निंद्य है / भाग ३ / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
सुदृढ़ नहीं रह पाता।<br><br>
 
सुदृढ़ नहीं रह पाता।<br><br>
 
   
 
   
कृत्रिम शान्ति सशंक आप<br>
+
::कृत्रिम शान्ति सशंक आप<br>
अपने से ही डरती है,<br>
+
::अपने से ही डरती है,<br>
खड्ग छोड़ विश्वास किसी का<br>
+
::खड्ग छोड़ विश्वास किसी का<br>
कभी नहीं करती है|<br><br>
+
::कभी नहीं करती है|<br><br>
 
   
 
   
 
और जिन्हें इस शान्ति-व्यवस्था<br>
 
और जिन्हें इस शान्ति-व्यवस्था<br>
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
सार, सिद्धि दुर्लभ है।<br><br>
 
सार, सिद्धि दुर्लभ है।<br><br>
 
   
 
   
पर, जिनकी अस्थियाँ चबाकर,<br>
+
::पर, जिनकी अस्थियाँ चबाकर,<br>
शोणित पी कर तन का,<br>
+
::शोणित पी कर तन का,<br>
जीती है यह शान्ति, दाह<br>
+
::जीती है यह शान्ति, दाह<br>
समझो कुछ उनके मन का।<br><br>
+
::समझो कुछ उनके मन का।<br><br>
 
   
 
   
 
स्वत्व माँगने से न मिले,<br>
 
स्वत्व माँगने से न मिले,<br>
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
जियें या कि मिट जायें?<br><br>
 
जियें या कि मिट जायें?<br><br>
 
   
 
   
न्यायोचित अधिकार माँगने<br>
+
::न्यायोचित अधिकार माँगने<br>
से न मिले, तो लड़ के,<br>
+
::से न मिले, तो लड़ के,<br>
तेजस्वी छीनते समर को<br>
+
::तेजस्वी छीनते समर को<br>
जीत, या कि खुद मर के।<br><br>
+
::जीत, या कि खुद मर के।<br><br>
 
   
 
   
 
किसने कहा पाप है समुचित<br>
 
किसने कहा पाप है समुचित<br>
पंक्ति 40: पंक्ति 40:
 
अभय मारना-मरना?<br><br>
 
अभय मारना-मरना?<br><br>
 
   
 
   
क्षमा, दया, तप, तेज, मनोबल<br>
+
::क्षमा, दया, तप, तेज, मनोबल<br>
की दे वृथा दुहाई,<br>
+
::की दे वृथा दुहाई,<br>
धर्मराज व्यंजित करते तुम<br>
+
::धर्मराज व्यंजित करते तुम<br>
मानव की कदराई।<br><br>
+
::मानव की कदराई।<br><br>
 
   
 
   
 
हिंसा का आघात तपस्या ने<br>
 
हिंसा का आघात तपस्या ने<br>
पंक्ति 50: पंक्ति 50:
 
से हारता रहा है।<br><br>
 
से हारता रहा है।<br><br>
 
   
 
   
मन:शक्ति प्यारी थी तुमको<br>
+
::मन:शक्ति प्यारी थी तुमको<br>
यदि पौरुष ज्वलन से,<br>
+
::यदि पौरुष ज्वलन से,<br>
लोभ किया क्यों भरत-राज्य का?<br>
+
::लोभ किया क्यों भरत-राज्य का?<br>
फिर आये क्यों वन से?<br><br>
+
::फिर आये क्यों वन से?<br><br>
 
   
 
   
 
पिया भीष्म ने विष, लाक्षागृह<br>
 
पिया भीष्म ने विष, लाक्षागृह<br>
पंक्ति 60: पंक्ति 60:
 
कहलायी दासी।<br><br>
 
कहलायी दासी।<br><br>
 
   
 
   
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल,<br>
+
::क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल,<br>
सबका लिया सहारा;<br>
+
::सबका लिया सहारा;<br>
पर नर-व्याघ्र सुयोधन तुमसे<br>
+
::पर नर-व्याघ्र सुयोधन तुमसे<br>
कहो, कहाँ कब हारा?<br><br>
+
::कहो, कहाँ कब हारा?<br><br>

01:49, 1 अगस्त 2008 का अवतरण

न्याय शान्ति का प्रथम न्यास है
जब तक न्याय न आता,
जैसा भी हो महल शान्ति का
सुदृढ़ नहीं रह पाता।

कृत्रिम शान्ति सशंक आप
अपने से ही डरती है,
खड्ग छोड़ विश्वास किसी का
कभी नहीं करती है|

और जिन्हें इस शान्ति-व्यवस्था
में सुख-भोग सुलभ है,
उनके लिये शान्ति ही जीवन -
सार, सिद्धि दुर्लभ है।

पर, जिनकी अस्थियाँ चबाकर,
शोणित पी कर तन का,
जीती है यह शान्ति, दाह
समझो कुछ उनके मन का।

स्वत्व माँगने से न मिले,
संघात पाप हो जायें,
बोलो धर्मराज, शोषित वे
जियें या कि मिट जायें?

न्यायोचित अधिकार माँगने
से न मिले, तो लड़ के,
तेजस्वी छीनते समर को
जीत, या कि खुद मर के।

किसने कहा पाप है समुचित
स्वत्व-प्राप्ति-हित लड़ना?
उठा न्याय का खड्ग समर में
अभय मारना-मरना?

क्षमा, दया, तप, तेज, मनोबल
की दे वृथा दुहाई,
धर्मराज व्यंजित करते तुम
मानव की कदराई।

हिंसा का आघात तपस्या ने
कब, कहाँ सहा है?
देवों का दल सदा दानवों
से हारता रहा है।

मन:शक्ति प्यारी थी तुमको
यदि पौरुष ज्वलन से,
लोभ किया क्यों भरत-राज्य का?
फिर आये क्यों वन से?

पिया भीष्म ने विष, लाक्षागृह
जला, हुए वनवासी,
केशकर्षिता प्रिया सभा-सम्मुख
कहलायी दासी।

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल,
सबका लिया सहारा;
पर नर-व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा?