भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लड़ाई / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल | |संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल | ||
}} | }} | ||
− | <poem>लड़ाई के बाद | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
+ | लड़ाई के बाद | ||
छुट्टी पर घर चले सिपाही ने | छुट्टी पर घर चले सिपाही ने | ||
देखा खिडकी के शीशे में | देखा खिडकी के शीशे में | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 20: | ||
घिर आई है | घिर आई है | ||
आंखों के नीचे | आंखों के नीचे | ||
− | अनुभव की | + | अनुभव की झुर्री |
ऊँघता है पलकों के पलने में | ऊँघता है पलकों के पलने में | ||
थका हुआ युद्ध | थका हुआ युद्ध |
10:16, 20 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
लड़ाई के बाद
छुट्टी पर घर चले सिपाही ने
देखा खिडकी के शीशे में
आई एक सुरंग
जल उठे डिब्बे के छोटे बल्ब
यात्रियों के अपरिचित चेहरे
दर्पण के माहौल की उत्सुकता
दर्पण बने कांच में
खुद को देखता है सिपाही
बोलती है धुंधली परछाईं
घिर आई है
आंखों के नीचे
अनुभव की झुर्री
ऊँघता है पलकों के पलने में
थका हुआ युद्ध
आग बरसाने वाली
उसकी कठोर उंगलियों ने
मनी-ऑर्डर की वापस आई रसीद को भी
तो लपेटा है
सुरंग पार पहुंचते ही
जगमगा उठते हैं
ब्रास के लाल फूल
सरसराते हैं
परिवर्तित अर्थ गभित
गहरे हरे पत्ते
घिरता है धीरे-धीरे
जनवरी का जमता अंधेरा
सिपाही बहुत उदास है।