भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कौन है यह मनखान / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल }} <poem>...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अवतार एनगिल
 
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
+
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल; तीन डग कविता / अवतार एनगिल
 
}}
 
}}
<poem>मनखान इस्पाती रानों वाले
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
मनखान इस्पाती रानों वाले
 
उस पुरुष का नाम है
 
उस पुरुष का नाम है
 
जिसकी कमर से लिपटे काले सांप
 
जिसकी कमर से लिपटे काले सांप
पंक्ति 62: पंक्ति 64:
 
उन भूरे स्रोतों से
 
उन भूरे स्रोतों से
 
गुनगुना जोगिया दूध पीते हैं
 
गुनगुना जोगिया दूध पीते हैं
औ' चै की सोनल धूप में
+
औ' चैत की सोनल धूप में
 
एक-दूसरे का पीछा करते हैं-----
 
एक-दूसरे का पीछा करते हैं-----
  

16:11, 24 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

मनखान इस्पाती रानों वाले
उस पुरुष का नाम है
जिसकी कमर से लिपटे काले सांप
उसकी नारी छातियों से
गुनगुना जोगिया दूध पीते हैं
औ' चैत की सोनल धूप में
एक-दूसरे का पीछा करते हैं

घाटी के कुछ लोग कहते हैं
मनखान आदमी नहीं, औरत है
पर कुछ बूढ़े कहते हैं
वह औरत नहीं,आदमी है
जिसकी एक बीवी है----ताप्ती
जिसका एक बेटा है---हंसा

हर बार
युगों पुराने नाम लेकर
मोसमे-बहार के साथ-साथ
वे इसी नगर में आते हैं
परन्तु हर बार
घाटी में लोग
अपनी क्षीण स्मरणशक्ति के कारण
उन्हें भूल चुके होते हैं
यहां तक
कि शापित हंसा और ताप्ति भी
अतीत-मुक्त होते हैं
जबकि याददाश्त का दुःख
सिर्फ मनखान की दौलत है

इन तीनों को
कभी किसी ने जनमते नहीं देखा
कभी किसी ने मरते नहीं देखा
तथापि
कभी किसी मौसमें-बहार के साथ-साथ
वे आते हैं
और किसी शरद के बर्फानी अंधड़ों में
चलते-चलते
अदृष्य हो जाते हैं

मनखान खुद
कभी मसखरा
कभी राजा
कभी बनिया
कभी गृहस्थ बनता है
कभी घाटी में घटता है
चौरास्ते में लुटता है
कारागारों में घुटता है
धान कूटता है
शब्द बीजने वाला किसान बनता है
या आकाश पर
ज़मीन बनकर तनता है

इस्पाती जांघों वाला यह आदमी
जिसकी छाती पर
नीले नारी स्तन हैं
जिसके पेट से लिपटे काले सांप
उन भूरे स्रोतों से
गुनगुना जोगिया दूध पीते हैं
औ' चैत की सोनल धूप में
एक-दूसरे का पीछा करते हैं-----

वही है मनखान
मनखान
जो खिलखिलाकर हंसता है
बिलबिलाकर रोता है
मनखान था
है
होता है ।