"किसान मनखान / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अवतार एनगिल | |रचनाकार=अवतार एनगिल | ||
− | |संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल | + | |संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल; तीन डग कविता / अवतार एनगिल |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
आवारा जानवरों का एक झुंड | आवारा जानवरों का एक झुंड | ||
ज़मीन रौंदता | ज़मीन रौंदता | ||
− | + | भागा चला आ रहा था | |
मनखान | मनखान | ||
कमर पर हाथ रखकर | कमर पर हाथ रखकर |
16:15, 24 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
जब किसान मनखान ने
ज़मीन के उस टुकड़े में
अपने शब्द बीजे
तो दूर-दूर तक धूप थी
उसने आंखों पर हाथ धरकर
सामने देखाः
आवारा जानवरों का एक झुंड
ज़मीन रौंदता
भागा चला आ रहा था
मनखान
कमर पर हाथ रखकर
खड़ा हो गया
और
खुद से कहने लगा----
तुम अड़ोगे
चाहे अड़ने के मायने हैं---टूटना
तुम लड़ोगे
चाहे लड़ने के मायने हैं रौद दिया जाना
तुम मर भी सकते हो
पर मरने का अर्थ होगा
इन बीजों का
ख़तरों में घिर जाना
फिर भी मनखान
कमज़ोर मनखान
डरो मत
तुम्हारे होने न होने से
कोई फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि असली मुद्दा तो
धरती को बीजना है
इतना कहकर
कमज़ोर मनखान
तनकर खड़ा हो गया
और
लाठी उठाते हुए
उसके मन में
संभावना कौंधी
यह भी तो हो सकता है__
कि कल कोई आए
तेज़ हवाएं चलें
ये बीज़ उड़ें
और मन्त्र बनकर
उसकी बांसुरी में बस जाएं।