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"रंग : छह कविताएँ-1 (लाल) / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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12:23, 26 अप्रैल 2010 का अवतरण

यह दाडिम के फूल का रंग है

दाडिम के फल-सा पककर
फूट रहा है जिसका मन
यह उस स्‍ञी के प्रसन्‍न मन का रंग है
यह रंग पान से रचे दोस्‍त के होंठों की
मुस्‍कुराहट का है
यह रंग है खूब रोयी बहन की ऑंखों का

यह रंग राजा टिड्डे का है
जिसकी पूंछ में बंधे हैं
बच्‍चों के धागे और संदेश
यह रंग रानी तितली का है
जिसे एक बच्‍ची लिये जा रही है घर

यह रंग उस आम का है
जो टेसुओं के नाम से जानी जाती है
और जिसके सुलगते ही वसन्‍त आज जाता है

दरअसल यह उस आकाश गंगा का रंग है
जिसे धारण करती है मॉं अपनी मॉंग में
जिसके डर से हजारों कोस
दूर खड़ा रहता है काल
और मॉं रहती है सदा सुहागिन.