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"रंग : छह कविताएँ-4 (सफ़ेद) / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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12:47, 26 अप्रैल 2010 का अवतरण
दुनिया की सबसे पहली स्ञी के
स्तनों से बहकर जो अमर हो गया
वही रंग है यह
यों यह आपको कॉंस और
दूधमोंगरों के फूलों में भी मिल जायेगा
जब स्ञियों के पास
बचता नहीं कोई दूसरा रंग
वे इसी रंग के सहारे काट देती हैं
अपना सारा जीवन
यह रंग उन बगुलों का भी है
जो नगरों के आसमान से
कभी-कभी तफरीह के लिए आते हैं
और बीट करते हैं गॉंव-बस्तियों के पेड़ों पर
मैं इस रंग से पूछूंगा उस हंस के बारे में
जो मोती चुगता है
और जानता है मानसरोवर का पता
यह रंग जब दीवारों से रूठ जाता है
लगभग निश्चित हो जाती है
उनके गिरने की तारीख
जब टूट चुके तारों के शोक में
घर लौटते हैं हम
हमारे सामने एक साफ कागज में मुस्कुराता है यह रंग
हमें आमंञित करता हुआ.