भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरे बाप का बेटा / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: मेरे बाप को मरे इस दिन चार साल हो गये<br /> <br /> बाप <br /> पियक्‍कड़ मजदूर<br …)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
मेरे बाप को मरे इस दिन चार साल हो गये<br />
+
{{KKGlobal}}
<br />
+
{{KKRachna
बाप <br />
+
|रचनाकार=लाल्टू
पियक्‍कड़ मजदूर<br />
+
|संग्रह= एक झील थी बर्फ़ की / लाल्टू
मॉं को लातें मारता<br />
+
}}
<br />
+
<poem>
शराब की महक के साथ<br />
+
मेरे बाप को मरे इस दिन चार साल हो गए
गालियॉं होंठों से निकलतीं<br />
+
 
गोलियों की बौछार सी<br />
+
बाप  
<br />
+
पियक्‍कड़ मज़दूर
जहॉं मर्जी मूत देता<br />
+
माँ को लातें मारता
कभी-कभी<br />
+
 
सारी-सारी रात<br />
+
शराब की महक के साथ
जगे रहते हम<br />
+
गालियाँ होंठों से निकलतीं
<br />
+
गोलियों की बौछार-सी
मजदूर बाप मेरा<br />
+
 
शहर के गन्‍दे नालों सा सच<br />
+
जहाँ मर्ज़ी मूत देता
थप्‍पड़ मार-मार कोशिश की<br />
+
कभी-कभी
मैं पढ़ूं <br />
+
सारी-सारी रात
बन जाऊं साहबों सा पैसे वाला<br />
+
जगे रहते हम
गन्‍दगी ने बनाया मुझे<br />
+
 
खौलता सच्‍चा इंसान.<br />
+
मज़दूर बाप मेरा
<br />
+
शहर के गन्‍दे नालों-सा सच
 +
थप्‍पड़ मार-मार कोशिश की
 +
मैं पढ़ूँ
 +
बन जाऊँ साहबों-सा पैसे वाला
 +
गन्‍दगी ने बनाया मुझे
 +
खौलता सच्‍चा इंसान।
 +
</poem>

01:34, 27 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

मेरे बाप को मरे इस दिन चार साल हो गए

बाप
पियक्‍कड़ मज़दूर
माँ को लातें मारता

शराब की महक के साथ
गालियाँ होंठों से निकलतीं
गोलियों की बौछार-सी

जहाँ मर्ज़ी मूत देता
कभी-कभी
सारी-सारी रात
जगे रहते हम

मज़दूर बाप मेरा
शहर के गन्‍दे नालों-सा सच
थप्‍पड़ मार-मार कोशिश की
मैं पढ़ूँ
बन जाऊँ साहबों-सा पैसे वाला
गन्‍दगी ने बनाया मुझे
खौलता सच्‍चा इंसान।