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"घर संसार में घुसते ही / विनोद कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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16:40, 27 अप्रैल 2010 का अवतरण
घर संसार में घुसते ही
पहिचान बतानी होती है
उसकी आहट सुन
पत्नी बच्चे पूछेंगे 'कौन?'
'मैं हूं' वह कहता है
तब दरवाजा खुलता है.
घर उसका शिविर
जहॉं घायल होकर वह लौटता है.
रबर की चप्पल को
छेद कर कोई जूते का खीला उसका तलुआ छेद गया है.
पैर से पट्टी बॉंध सुस्ता कर कुछ खाकर
दूसरे दिन अपने घर का पूरा दरवाजा खोलकर
वह बाहर निकला
अखिल संसार में उसकी आहट हुई
दबे पॉंव नहीं
खॉंसा और कराहा
'कौन?' यह किसी ने नहीं पूछा
सड़क के कुत्ते ने पहिचानकर पूंछ हिलाई
किराने वाला उसे देखकर मुस्कुराया
मुस्कुराया तो वह भी.
एक पान ठेले के सामने
कुछ ज्यादा देर खड़े होकर
उधार पान मॉंगा
और पान खाते हुए
कुछ देर खड़े होकर
फिर कुछ ज्यादा देर खड़े होकर
परास्त हो गया.