भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बेशक छोटे हों लेकिन / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल' | |रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल' | ||
}} | }} | ||
+ | [[Category:गज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | |||
बेशक छोटे हों लेकिन धरती का हिस्सा हम भी हैं | बेशक छोटे हों लेकिन धरती का हिस्सा हम भी हैं | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 39: | ||
अपने मन के वृंदावन के छोटे कान्हा हम भी हैं। | अपने मन के वृंदावन के छोटे कान्हा हम भी हैं। | ||
+ | |||
+ | </poem> |
10:38, 4 मई 2010 का अवतरण
बेशक छोटे हों लेकिन धरती का हिस्सा हम भी हैं
जैसे प्रभु की सारी रचना, वैसी रचना हम भी हैं।
इतना भी आसान नहीं है पढ़ना और समझ पाना
सुख की दुख की संघर्षों की पूरी गाथा हम भी हैं।
आज नहीं हो कल तुमको भी साथ हमारे चलना है
एक ज़माना तुम भी थे तो एक ज़माना हम भी हैं।
फ़न ने ही हमको दी है मर्यादा जीने मरने की
तो फिर फन के जीने मरने की मर्यादा हम भी हैं।
ईश्वर ने तो लिख रक्खा है सबके माथे पर लेकिन
अपने सुख के अपने दुख के एक विधाता हम भी हैं।
जब जब भी इच्छा होती है रास रचा लेते हैं हम
अपने मन के वृंदावन के छोटे कान्हा हम भी हैं।