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"कुछ बहुत आसान / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर
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आज अख़बारों में कितना खूऩ है | आज अख़बारों में कितना खूऩ है | ||
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कल सड़क पर था बहुत खूँख़्व़ार दिन। | कल सड़क पर था बहुत खूँख़्व़ार दिन। | ||
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पाप हो या जुल़्म हो हर एक की | पाप हो या जुल़्म हो हर एक की | ||
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हद का आता ही है आख़िरकार दिन। | हद का आता ही है आख़िरकार दिन। | ||
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रात ने निगला उसे हर शाम को | रात ने निगला उसे हर शाम को | ||
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भोर में जन्मा मगर हर बार दिन। | भोर में जन्मा मगर हर बार दिन। | ||
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दोस्ती है तो रहे वह उम्र भर | दोस्ती है तो रहे वह उम्र भर | ||
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दुश्मनी हो तो चले दो-चार दिन। | दुश्मनी हो तो चले दो-चार दिन। | ||
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22:47, 4 मई 2010 के समय का अवतरण
कुछ बहुत आसान, कुछ दुश्वार दिन
रोज़ लाता है नए किरदार दिन।
आज अख़बारों में कितना खूऩ है
कल सड़क पर था बहुत खूँख़्व़ार दिन।
पाप हो या जुल़्म हो हर एक की
हद का आता ही है आख़िरकार दिन।
रात ने निगला उसे हर शाम को
भोर में जन्मा मगर हर बार दिन।
दोस्ती है तो रहे वह उम्र भर
दुश्मनी हो तो चले दो-चार दिन।