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"बहुत मुश्किल है कहना / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर
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बहुत मुश्किल है कहना क्या सही है क्या गल़त यारो | बहुत मुश्किल है कहना क्या सही है क्या गल़त यारो | ||
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है अब तो झूठ की भी, सच की जैसी शख्स़ियत यारो। | है अब तो झूठ की भी, सच की जैसी शख्स़ियत यारो। | ||
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दरिन्दों को भी पहचाने तो पहचाने कोई कैसे | दरिन्दों को भी पहचाने तो पहचाने कोई कैसे | ||
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नज़र आती है चेहरे पर बड़ी मासूमियत यारो। | नज़र आती है चेहरे पर बड़ी मासूमियत यारो। | ||
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जिधर देखो उधर मिल जायेंगे अख़बार नफ़रत के | जिधर देखो उधर मिल जायेंगे अख़बार नफ़रत के | ||
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बहुत दिन से मोहब्बत का न देखा एक ख़त यारो। | बहुत दिन से मोहब्बत का न देखा एक ख़त यारो। | ||
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वहाँ हर पेड़ काँटेदार ज़हरीला ही उगता है | वहाँ हर पेड़ काँटेदार ज़हरीला ही उगता है | ||
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सियासत की ज़मीं मे है न जाने क्या सिफ़त यारो। | सियासत की ज़मीं मे है न जाने क्या सिफ़त यारो। | ||
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तुम्हारे पास दौलत की ज़मीं का एक टुकड़ा है | तुम्हारे पास दौलत की ज़मीं का एक टुकड़ा है | ||
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हमारे पास है ख्व़ाबों की पूरी सल्तनत यारो। | हमारे पास है ख्व़ाबों की पूरी सल्तनत यारो। | ||
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22:50, 4 मई 2010 के समय का अवतरण
बहुत मुश्किल है कहना क्या सही है क्या गल़त यारो
है अब तो झूठ की भी, सच की जैसी शख्स़ियत यारो।
दरिन्दों को भी पहचाने तो पहचाने कोई कैसे
नज़र आती है चेहरे पर बड़ी मासूमियत यारो।
जिधर देखो उधर मिल जायेंगे अख़बार नफ़रत के
बहुत दिन से मोहब्बत का न देखा एक ख़त यारो।
वहाँ हर पेड़ काँटेदार ज़हरीला ही उगता है
सियासत की ज़मीं मे है न जाने क्या सिफ़त यारो।
तुम्हारे पास दौलत की ज़मीं का एक टुकड़ा है
हमारे पास है ख्व़ाबों की पूरी सल्तनत यारो।