भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इच्छा / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatKavhttp://www.kavitakosh.org/kk/skins/common/images/button_bold.pngita}}
+
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
'''इच्छा'''
 
 
 
सूखी रेत में / अच्छा लगता है
 
सूखी रेत में / अच्छा लगता है
 
होना चांदी के टुकड़ों का
 
होना चांदी के टुकड़ों का
जिस एक -एक टुकड़े में
+
जिस एक-एक टुकड़े में
एक -एक सूरज चमकता है
+
एक-एक सूरज चमकता है
 
पिछवाड़े की चिकनी काली मिट्टी में
 
पिछवाड़े की चिकनी काली मिट्टी में
 
दबा देना फिर
 
दबा देना फिर
 
भरी भरी हथेलियाँ
 
भरी भरी हथेलियाँ
हज़ार- हज़ार सूरज ओर कर देना
+
हज़ार-हज़ार सूरज ओर कर देना
उस अपने एक घर की.
+
उस अपने एक घर की।
 
</poem>
 
</poem>

23:06, 4 मई 2010 के समय का अवतरण

सूखी रेत में / अच्छा लगता है
होना चांदी के टुकड़ों का
जिस एक-एक टुकड़े में
एक-एक सूरज चमकता है
पिछवाड़े की चिकनी काली मिट्टी में
दबा देना फिर
भरी भरी हथेलियाँ
हज़ार-हज़ार सूरज ओर कर देना
उस अपने एक घर की।