भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दीन भारतवर्ष / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
विश्व में करतार ने,
 
विश्व में करतार ने,
  
आकृष्ठ था सब को किया
+
आकृष्ट था सब को किया
  
 
तेरे, मधुर व्यवहार ने।
 
तेरे, मधुर व्यवहार ने।
पंक्ति 34: पंक्ति 34:
 
गान सुनते थे भले,
 
गान सुनते थे भले,
  
रब है उलूकों का वहाँ
+
रव है उलूकों का वहाँ
  
क्या भाग्य है अपने जले।
+
क्या भाग्य हैं अपने जले।
  
  

23:22, 5 मार्च 2007 का अवतरण

लेखिका: महादेवी वर्मा

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


सिरमौर सा तुझको रचा था

विश्व में करतार ने,

आकृष्ट था सब को किया

तेरे, मधुर व्यवहार ने।

नव शिष्य तेरे मध्य भारत

नित्य आते थे चले,

जैसे सुमन की गंध से

अलिवृन्द आ-आकर मिले।

वह युग कहाँ अब खो गया वे देव वे देवी नहीं,


ऐसी परीक्षा भाग्य ने

किस देश की ली थी कहीं।

जिस कुंज वन में कोकिला के

गान सुनते थे भले,

रव है उलूकों का वहाँ

क्या भाग्य हैं अपने जले।


अवतार प्रभु लेते रहे

अवतार ले फिर आइए,

इस दीन भारतवर्ष को

फिर पुण्य भूमि बनाइए।


यह महादेवी जी के बचपन की रचना है।