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"आते कैसे सूने पल / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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आते कैसे सूने पल
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जीवन में ये सूने पल!
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जब लगता सब विशृंखल,
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:खो देती उर की वीणा
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:झंकार मधुर जीवन की,
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:बस साँसों के तारों में
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कुसुमित-पुलिनों की क्रीड़ा-
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ब्रीड़ा से तनिक ने लेना?
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:सागर-संगम में है सुख,
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:जीवन की गति में भी लय;
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:जीवन-लय से हों मधुमय।
  
आते कैसे सूने पल<br>
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रचनाकाल: जनवरी’ १९३२
जीवन में ये सूने पल ?<br>
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खो देती उर की वीणा<br>
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बस साँसों के तारों में<br>
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सोती स्मृति सूनेपन की !<br><br>
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बह जाता बहने का सुख,<br>
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लहरों का कलरव, नर्तन,<br>
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बढ़ने की अति-इच्छा में<br>
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जाता जीवन से जीवन !<br><br>
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आत्मा है सरिता के भी<br>
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जिससे सरिता है सरिता;<br>
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जल-जल है, लहर-लहर रे,<br>
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क्या यह जीवन ? सागर में<br>
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जल भार मुखर भर देना !<br>
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कुसुमित पुलिनों की कीड़ा-<br>
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ब्रीड़ा से तनिक ने लेना !<br><br>
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सागर संगम में है सुख,<br>
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जीवन की गति में भी लय,<br>
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मेरे क्षण-क्षण के लघु कण<br>
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जीवन लय से हों मधुमय <br><br>
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10:35, 13 मई 2010 के समय का अवतरण

आते कैसे सूने पल
जीवन में ये सूने पल!
जब लगता सब विशृंखल,
तृण, तरु, पृथ्वी, नभ-मंडल।
खो देती उर की वीणा
झंकार मधुर जीवन की,
बस साँसों के तारों में
सोती स्मृति सूनेपन की।
बह जाता बहने का सुख,
लहरों का कलरव, नर्तन,
बढ़ने की अति-इच्छा में
जाता जीवन से जीवन।
आत्मा है सरिता के भी,
जिससे सरिता है सरिता;
जल जल है, लहर लहर रे,
गति गति, सृति सृति चिर-भरिता।
क्या यह जीवन? सागर में
जल-भार मुखर भर देना!
कुसुमित-पुलिनों की क्रीड़ा-
ब्रीड़ा से तनिक ने लेना?
सागर-संगम में है सुख,
जीवन की गति में भी लय;
मेरे क्षण-क्षण के लघु-कण
जीवन-लय से हों मधुमय।

रचनाकाल: जनवरी’ १९३२