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"ध्वज गीत : फहराता है आज तिरंगा / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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इन सपनों के पंख न काटो
 
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फिर वह लौ कहाँ आता है?
 
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ःःः धूलि में गिर जाता जो
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वह नभ में कब उड पाता है?
 
वह नभ में कब उड पाता है?

20:50, 17 नवम्बर 2007 का अवतरण

इन सपनों के पंख न काटो

इन सपनों की गति मत बाँधो?


सौरभ उड जाता है नभ में

फिर वह लौ कहाँ आता है?

धूलि में गिर जाता जो

वह नभ में कब उड पाता है?

अग्नि सदा धरती पर जलती

धूम गगन में मँडराता है।

सपनों में दोनों ही गति है

उडकर आँखों में ही आता है।

इसका आरोहण मत रोको

इसका अवरोहण मत बाँधो।


मुक्त गगन में विचरण कर यह

तारों में फिर मिल जायेगा,

मेघों से रंग औ’ किरणों से

दीप्ति लिए भू पर आयेगा।

स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प

भूमि को सिखलायेगा।

नभ तक जाने से मत रोको

धरती से इसको मत बाँधो?

इन सपनों के पोख न काटो

इन सपनों की गति मत बाँधो।