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"कोई जान अपनी लुटा गया, तेरी चितवनों के जवाब में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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11:41, 22 मई 2010 का अवतरण
कोई जान अपनी लुटा गया, तेरी चितवनों के जवाब में
उसे गंध प्यार की ले उडी, नहीं और क्या था गुलाब में!
ये सवाल है मेरे प्यार का, ये जवाब है तेरे रूप का
तुझे क्या बताऊँ मैं, दिलरुबा! जो लिखा है दिल की किताब में!
जो चढा तो फिर न उतर सका, मेरी उम्र भर का ये था नशा
जिसे तू नज़र से पिला गया, उसे क्या मिलेगा शराब में!
जो कहा ये मैंने कि हमसफ़र! कभी मेरी ओर भी हो नज़र
तो हँसा कि प्यार के नाम पर, यही गम हैं तेरे हिसाब में
कभी तुम हुए भी जो सामने, तो नज़र मिली न गले-गले
ये कसक, ये दर्द, ये तड़पनें, ये जलन हैं उसकी गुलाब में