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"हिचकते औ' होते भयभीत / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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हुई थी मदिरा मुझको प्राप्त
नहीं, पर, थी वह भेंट, न दान,
अमृत भी मुझको अस्वीकार
अगर कुंठित हो मेरा मान;
- दृगों में मोती की निधि खोल
- चुकाया था मधुकण का मोल,
- हलाहल यदि आया है यदि पास
- हृदय का लोहू दूँगा तोल!