भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
यहाँ न कोई खिड़की है
न दरवाज़ा
फिर भी घर कि की संभावना मौजूद है
कान लगाकर सुनें
तो पानी के बहने कि की आवाज़ आएगी
वहीँ किनारे पेड़ भी होंगे कुछ हरे कुछ पत्रविहीन