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"ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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21:43, 1 जून 2010 के समय का अवतरण


ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं

जिसने पाया कुछ बापू से वरदान नहीं?

मानव के हित जो कुछ भी रखता था माने
बापू ने सबको
गिन-गिनकर
अवगाह लिया।


बापू की छाती की हर साँस तपस्‍या थी

आती-जाती हल करती एक समस्‍या थी,

पल बिना दिए कुछ भेद कहाँ पाया जाने,
बापू ने जीवन
के क्षण-क्षण को
थाह लिया।


किसके मरने पर जगभर को पछताव हुआ?

किसके मरने पर इतना हृदय-माथव हुआ?

किसके मरने का इतना अधिक प्रभाव हुआ?

बनियापन अपना सिद्ध किया अपना सोलह आने,
जीने की किमत कर वसूल पाई-पाई,
मरने का भी
बापू ने मूल्‍य
उगाह लिया।