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"रेत पर चमकती / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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यहाँ न रेत है, न मैं हूँ, न मणियाँ हैं,  
 
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केवल सन्नाटे में गूँजती ध्वनियाँ हैं.
 
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06:32, 2 जून 2010 के समय का अवतरण


रेत पर चमकती मणियाँ
रह-रह कर मुझे लुभाती हैं,
पर मैं ज्यों ही उन्हें उठाने को झुकता हूँ
वे हवा में ओझल हो जाती हैं;
सच कहूं तो
यहाँ न रेत है, न मैं हूँ, न मणियाँ हैं,
केवल सन्नाटे में गूँजती ध्वनियाँ हैं.