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"उर्वशी / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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प्रथम अंक
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साधारणोंअयमुभ्यो: प्रणयः स्मरस्य,
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तप्तें ताप्त्मयसा घटनाय योग्यम._
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                                                विक्रमोर्वशीयम
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राजा पुरुरवा की राजधानी,प्रतिष्ठानपुर के समीप एकांत पुष्प कानन; शुक्ल पक्ष की रात; नटी और सूत्रधार चांदनी में प्रकृति की शोभा का पान कर रहे हैं.
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                      सूत्रधार
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नीचे पृथ्वी पर वसंत की कुसुम-विभा छाई है,
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ऊपर है चन्द्रमा द्वादशी का निर्मेघ गगन में.
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खुली नीलिमा पर विकीर्ण तारे यों दीप रहे हैं,
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चमक रहे हों नील चीर पर बूटे ज्यों चांदी के;
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या प्रशांत, निस्सीम जलधि में जैसे चरण-चरण पर
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नील वारि को फोड़ ज्योति के द्वीप निकल आये हों
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                        नटी 
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इन द्वीपों के बीच चन्द्रमा मंद मंद चलता है,
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मंद-मंद चलती है नीचे वायु श्रांत मधुवन की;
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मद-विह्वल कामना प्रेम की, मानो, अलसायी-सी
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कुसुम-कुसुम पर विरद मंद मधु गति में घूम रही हो
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                      सूत्रधार   
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सारी देह समेत निबिड़ आलिंगन में भरने को
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गगन खोल कर बांह विसुध वसुधा पर झुका हुआ है

15:55, 9 जून 2010 का अवतरण


उर्वशी
Uravasii.jpg
रचनाकार रामधारी सिंह "दिनकर"
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
वर्ष
भाषा
विषय कविताएँ
विधा
पृष्ठ 132
ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।

पात्र परिचय पुरुष-- पुरुरवा - वेदकालीन, प्रतिष्ठानपुर के विक्रमी ऐल राजा, नायक महर्षि च्यवन - प्रसिद्द ;भ्रिगुवंशी, वेदकालीन महर्षि सूत्रधार - नाटक का शास्त्रीय आयोजक, अनिवार्य पात्र कंचुकी - सभासद - प्रतिहारी - प्रारब्ध आदि आयु - पुरुरवा-उर्वशी का पुत्र महामात्य - पुरुरवा के मुख्य सचिव विश्व्मना - राज ज्योतिषी


नारी-- नटी - शास्त्रीय पात्री, सूत्रधार की पत्नी सहजन्या, रम्भा, मेनका, चित्रलेखा - अप्सराएं औशीनरी - पुरुरवा पत्नी, प्रतिष्ठानपुर की महारानी निपुणिका,मदनिका - औशिनरी की सखियाँ उर्वशी - अप्सरा, नायिका सुकन्या - च्यवन ऋषी की सहधर्मिणी अपाला - उर्वशी की सेविका _________________________________________________________________ प्रथम अंक साधारणोंअयमुभ्यो: प्रणयः स्मरस्य, तप्तें ताप्त्मयसा घटनाय योग्यम._

                                               विक्रमोर्वशीयम 

राजा पुरुरवा की राजधानी,प्रतिष्ठानपुर के समीप एकांत पुष्प कानन; शुक्ल पक्ष की रात; नटी और सूत्रधार चांदनी में प्रकृति की शोभा का पान कर रहे हैं.

                      सूत्रधार 

नीचे पृथ्वी पर वसंत की कुसुम-विभा छाई है, ऊपर है चन्द्रमा द्वादशी का निर्मेघ गगन में. खुली नीलिमा पर विकीर्ण तारे यों दीप रहे हैं, चमक रहे हों नील चीर पर बूटे ज्यों चांदी के; या प्रशांत, निस्सीम जलधि में जैसे चरण-चरण पर नील वारि को फोड़ ज्योति के द्वीप निकल आये हों

                       नटी  

इन द्वीपों के बीच चन्द्रमा मंद मंद चलता है, मंद-मंद चलती है नीचे वायु श्रांत मधुवन की; मद-विह्वल कामना प्रेम की, मानो, अलसायी-सी कुसुम-कुसुम पर विरद मंद मधु गति में घूम रही हो

                      सूत्रधार     

सारी देह समेत निबिड़ आलिंगन में भरने को गगन खोल कर बांह विसुध वसुधा पर झुका हुआ है