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"क्या मेरी आत्मा का चिर धन / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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क्या मेरी आत्मा का चिर-धन?
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मैं रहता नित उन्मन, उन्मन! 
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मैं प्रेमी उच्चादर्शों का,
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निज सुख से ही चिर चंचल मन,<br>
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रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२
मैं हूँ प्रतिपल उन्मन, उन्मन।<br><br>
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मैं प्रेम उच्चादर्शों का,<br>
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संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शों का,<br>
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जीवन के हर्ष-विमर्षों का;<br><br>
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लगता अपूर्ण मानव-जीवन,<br>
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मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन।<br><br>
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जग-जीवन में उल्लास मुझे,<br>
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नव आशा; नव अभिलाष मुझे;<br>
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ईश्वर पर चिर विश्वास मुझे;<br><br>
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चाहिए विश्व को नव जीवन<br>
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मैं आकुल रे उन्मन उन्मन !
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11:30, 10 जून 2010 के समय का अवतरण

क्या मेरी आत्मा का चिर-धन?
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन!
प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,
तृण, तरु, पशु, पक्षी, नर, सुरवर,
सुन्दर अनादि शुभ सृष्टि अमर;
निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
मैं हूँ प्रतिपल उन्मन, उन्मन।

मैं प्रेमी उच्चादर्शों का,
संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शों का,
जीवन के हर्ष-विमर्षों का;
लगता अपूर्ण मानव-जीवन,
मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन।

जग-जीवन में उल्लास मुझे,
नव-आशा, नव-अभिलाष मुझे,
ईश्वर पर चिर-विश्वास मुझे;
चाहिए विश्व को नव-जीवन
मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन!

रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२