भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लोग / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= गज़ल / विजय वाते }} <poem> भीगे रुमा…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:52, 11 जून 2010 का अवतरण
भीगे रुमाल हिलाते लोग,
सूखे मन ले जाते लोग|
होंठों पर षड्यंत्री चुप्पी,
मन की गाँठ दिखाते लोग|
चंदा जाए झूलाघर तो,
घर झूला ला पाते लोग|
आपनी अपनी पीर लिए सब,
रोते लोग रुलाते लोग|
शुद्ध गणित की भाषा मे अब,
गीत गज़ल भी गाते लोग |