भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"‘रेप’ बड़की हुई, मगर, घर में / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
रेप बड़की हुई मगर घर में
 
रेप बड़की हुई मगर घर में
घुस गया है अजीब डर घर
+
घुस गया है अजीब डर घर में
  
 
बूढ़े माँ-बाप ‘गाँव’ लगते हैं
 
बूढ़े माँ-बाप ‘गाँव’ लगते हैं
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
झुक गया है पिता का स्वर घर में
 
झुक गया है पिता का स्वर घर में
  
सबके चूल्हे हैं,यार,निट्टी के
+
सबके चूल्हे हैं,यार, मिट्टी  के
 
व्यर्थ तू झाँकता है घर-घर में
 
व्यर्थ तू झाँकता है घर-घर में
  
 
</poem>
 
</poem>

12:42, 11 जून 2010 के समय का अवतरण

रेप बड़की हुई मगर घर में
घुस गया है अजीब डर घर में

बूढ़े माँ-बाप ‘गाँव’ लगते हैं
जब से बच्चे हुए शहर घर में

छोटी ननदी की आँख लड़ने की
सिर्फ़ भाभी को है खबर घर में

जब से अफसर बना बड़ा बेटा
झुक गया है पिता का स्वर घर में

सबके चूल्हे हैं,यार, मिट्टी के
व्यर्थ तू झाँकता है घर-घर में