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23:57, 11 जून 2010 के समय का अवतरण
इतने ऊँचे आले में
कौन रखता है पत्थर
घड़कर गोल-गोल
सार भी क्या था
सार था
घरधणी के संग
मरण में।
ये अंडे हैं
आलणे में रखे हुए
जिनसे
नहीं निकल सके
बच्चे
कैसे बचते पंखेरू
जब मनुष्य ही
नहीं बचे।
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा
