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23:58, 11 जून 2010 के समय का अवतरण
सब थे
उस घड़ी
जब
बरसी थी
आकाश से
अथाह मिट्टी
सब हो गए जड़
मिल गए
बनते थेहड़ में
आज फ़िर
अपने ही वशंजो को
खोद निकाला है
कस्सी
खुरपी
बट्ठल-तगारी ने !
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा