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"यूँ है कि... / गोबिन्द प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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ऐसे में
 
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होना चहता हूँ  शीशा दिल
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होना चाहता हूँ  शीशा दिल
 
(मगर कहाँ  से लाऊँ मैं वो शफ़्फ़ाक  दिल)  
 
(मगर कहाँ  से लाऊँ मैं वो शफ़्फ़ाक  दिल)  
  

12:21, 12 जून 2010 के समय का अवतरण

यूँ है कि

मेरे सामने बैठा है कोई
मोम की शक्ल में ढल कर
बरसता हुआ बूँद-बूँद

ऐसे में
होना चाहता हूँ शीशा दिल
(मगर कहाँ से लाऊँ मैं वो शफ़्फ़ाक दिल)

गुज़रना
नदियाँ
जैसे गुज़र रही हैं
चुपचाप

सदियाँ
है अभी
इन अनलिखे कागज़ों में

धूप
बाकी है अभी
शिकस्ता साज़ में गोया

आवाज़
बाकी है अभी