भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इक नयी कशमकश से गुजरते रहे / ओमप्रकाश यती" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: इक नई कशमकश से गुज़रते रहे रोज़ जीते रहे रोज़ मरते रहे हमने जब …)
(कोई अंतर नहीं)

15:18, 13 जून 2010 का अवतरण

इक नई कशमकश से गुज़रते रहे रोज़ जीते रहे रोज़ मरते रहे

हमने जब भी कही बात सच्ची कही इसलिए हम हमेशा अखरते रहे

कुछ न कुछ सीखने का ही मौक़ा मिला हम सदा ठोकरों से सँवरते रहे

रूप की कल्पनाओं में दुनिया रही खुशबुओं की तरह तुम बिखरते रहे

जिंदगी की परेशानियों से “यती” लोग टूटा किये , हम निखरते रहे