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"इक नयी कशमकश से गुजरते रहे / ओमप्रकाश यती" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=ओमप्रकाश यती
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इक नई कशमकश से गुज़रते रहे  
 
इक नई कशमकश से गुज़रते रहे  
 
रोज़  जीते रहे  रोज़  मरते रहे   
 
रोज़  जीते रहे  रोज़  मरते रहे   
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जिंदगी की परेशानियों से “यती”
 
जिंदगी की परेशानियों से “यती”
लोग टूटा किये , हम निखरते रहे
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लोग टूटा किये,हम निखरते रहे
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15:21, 13 जून 2010 के समय का अवतरण

  
इक नई कशमकश से गुज़रते रहे
रोज़ जीते रहे रोज़ मरते रहे

हमने जब भी कही बात सच्ची कही
इसलिए हम हमेशा अखरते रहे

कुछ न कुछ सीखने का ही मौक़ा मिला
हम सदा ठोकरों से सँवरते रहे

रूप की कल्पनाओं में दुनिया रही
खुशबुओं की तरह तुम बिखरते रहे

जिंदगी की परेशानियों से “यती”
लोग टूटा किये,हम निखरते रहे