भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रावण / दीनदयाल शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> सालो-साल दशहरा आता पु…)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
  
 
रूप राम का धरकर कोई,
 
रूप राम का धरकर कोई,
अगनी बाण चलाए।
+
अग्निबाण चलाए।
 
धू-धू करके राख हो गया,
 
धू-धू करके राख हो गया,
 
नकली रावण हाय!
 
नकली रावण हाय!

18:56, 13 जून 2010 के समय का अवतरण

सालो-साल दशहरा आता
पुतला झट बन जाए।

बँधा हुआ रस्सी से रावण
खड़ा-खड़ा मुस्काए।
चाहे हो तो करे ख़ात्मा,
राम कहाँ से आए।

रूप राम का धरकर कोई,
अग्निबाण चलाए।
धू-धू करके राख हो गया,
नकली रावण हाय!

मिलकर खुशियाँ बाँटें सारे,
नाचें और नचाएँ।
अपने भीतर नहीं झाँकते,
खुद को राम कहाए।

सबके मन में बैठा रावण,
इसको कौन मिटाए।