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"आवाज़ के हमराह सरापा भी तो देखूं / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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20:21, 13 जून 2010 के समय का अवतरण
आवाज़ के हम राह सरापा भी तो देखूँ
ए जान ए सुखन मैं तिरा चेहरा भी तो देखूँ
सहरा की तरह रहते हुए थक गयी आँखें
दुःख कहता है अब मैं कोई दरिया देखूँ
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझसे
अपने लिए वो शख्स तड़पता भी तो देखूँ
अब तक तो मेरे शेर हवाला रहे तेरा
अब मैं तिरी रुसवाई का चर्चा भी तो देखूँ
अब तक जो सराब आये थे अनजाने में आये
पहचाने हुए रास्तों का धोखा भी तो देखूँ