भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इक शख्स को सोचती रही मैं / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:34, 13 जून 2010 के समय का अवतरण

इक शख्स को सोचती रही मैं
फिर आईना देखती रही मैं

उसकी तरह अपना नाम लेकर
खुद को भी नयी नयी लगी मैं

तू मेरे बिना न रह सका तो
कब तेरे बगैर जी सकी मैं

आती रहे अब कहीं से आवाज़
अब तो तिरे पास आ गई मैं

दामन था तिरा कि मेरा माथा
जो दाग भी थे मिटा चुकी मैं