भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उसके मसीहा के लिए / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=परवीन शाकिर
 
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=
+
|संग्रह=ख़ुशबू / परवीन शाकिर
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatNazm}}
 +
<poem>
 
अजनबी!
 
अजनबी!
 
 
कभी ज़िन्दगी में अगर तू अकेला हो
 
कभी ज़िन्दगी में अगर तू अकेला हो
 
 
और दर्द हद से गुज़र जाए
 
और दर्द हद से गुज़र जाए
 
+
आँखें तेरी
आंखें तेरी
+
 
+
 
बात-बेबात रो रो पड़ें
 
बात-बेबात रो रो पड़ें
 
 
तब कोई अजनबी
 
तब कोई अजनबी
 
+
तेरी तन्हाई के चाँद का नर्म हाला<ref>वृत्त</ref> बने
तेरी तन्हाई के चांद का नर्म हाला बने
+
तेरी क़ामत<ref>देह की गठन</ref> का साया बने
 
+
तेरे ज़ख़्मों पे मरहम रखे
तेरी क़ामत का साया बने
+
 
+
तेरे ज़्ख़्मों पे मरहम रखे
+
 
+
 
तेरी पलकों से शबनम चुने
 
तेरी पलकों से शबनम चुने
 
 
तेरे दुख का मसीहा बने
 
तेरे दुख का मसीहा बने
  
---------------------------
+
{{KKMeaning}}
हाला=वॄत्त;  क़ामत= देह की गठन
+
</poem>

13:11, 14 जून 2010 के समय का अवतरण

अजनबी!
कभी ज़िन्दगी में अगर तू अकेला हो
और दर्द हद से गुज़र जाए
आँखें तेरी
बात-बेबात रो रो पड़ें
तब कोई अजनबी
तेरी तन्हाई के चाँद का नर्म हाला<ref>वृत्त</ref> बने
तेरी क़ामत<ref>देह की गठन</ref> का साया बने
तेरे ज़ख़्मों पे मरहम रखे
तेरी पलकों से शबनम चुने
तेरे दुख का मसीहा बने

शब्दार्थ
<references/>