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एक मंज़र / परवीन शाकिर

74 bytes added, 02:20, 15 जून 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=इन्कार / परवीन शाकिर
}}
{{KKCatNazm}}<poem>कच्चा-सा इक मकांमकाँ, कहीं आबादियों से दूर 
छोटा-सा इक हुजरा, फ़राज़े-मकान पर
 सब्ज़े से झांकती झाँकती हुई खपरैल वाली छत 
दीवारे-चोब पर कोई मौसम की सब्ज़ बेल
 
उतरी हुई पहाड़ पर बरसात की वह रात
 
कमरे में लालटेन की हल्की-सी रौशनी
 
वादी में घूमता हुआ इक चश्मे-शरीर<ref>शरारती झरना</ref>
 
खिड़की को चूमता हुआ बारिश का जलतरंग
 सांसों साँसों में गूंजता गूँजता हुआ इक अनकही का भेद !
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</poem>
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