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"कितने आसान सबके सफ़र हो गए / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

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साँप-सीढ़ी का ये खेल भी खूब है,<br>
 
साँप-सीढ़ी का ये खेल भी खूब है,<br>

10:04, 19 जून 2010 के समय का अवतरण

कितने आसान

सबके सफर हो गए|

रेत पर नाम लिखकर अमर हो गए|

ये जो कुर्सी मिली, क्या करिश्मा हुआ,
अब तो दुश्मन भी लख्ते-जिगर हो गए|

साँप-सीढ़ी का ये खेल भी खूब है,
वो जो नब्बे थे, बिल्कुल सिफ़र हो गए|

एक लानत, मलामत मुसीबत बला,
तेग लकड़ी की थी, साईं ग़दर हो गए|

सबके चहरे पे एक सनसनी की ख़बर,
जैसे अख़बार वैसे शहर हो गए|

ये शिकायत जहाजों की है आजकल,
उथले तालाब भी अब बहर हो गए|