भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वह राम है / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=151 बाल-कविताएँ / रमेश कौशिक }} {{KKC…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:56, 21 जून 2010 का अवतरण
वह राम है
गंध बन जो फूल को महका रहा
वह राम है
पंछियों के कंठ से जो गा रहा
वह राम है।
हर किसी की आँख से जो दिप रहा
वह राम है
हर किसी की आंख से जो छिप रहा
वह राम है।
तारकों में झिलमलाता जो सदा
वह राम है।
बादलों से सिंधु तक जो बह रहा
वह राम है
मौन रह कर जो सभी कुछ कह रहा
वह राम है।
जो हमारी साँस में आ-जा रहा
वह राम है
जो धरा से व्योम तक है रम रहा
वह राम है।
गंध बन जो फूल को महका रहा
वह राम है
पंछियों के कंठ से जो गा रहा
वह राम है।
हर किसी की आँख से जो दिप रहा
वह राम है
हर किसी की आंख से जो छिप रहा
वह राम है।
तारकों में झिलमलाता जो सदा
वह राम है।
बादलों से सिंधु तक जो बह रहा
वह राम है
मौन रह कर जो सभी कुछ कह रहा
वह राम है।
जो हमारी साँस में आ-जा रहा
वह राम है
जो धरा से व्योम तक है रम रहा
वह राम है।