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वह राम है / रमेश कौशिक

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<poem>'''वह राम है'''<br /><br />गंध बन जो फूल को महका रहा<br />वह राम है<br />पंछियों के कंठ से जो गा रहा<br />वह राम है।<br /><br />हर किसी की आँख से जो दिप रहा<br />वह राम है<br />हर किसी की आंख आँख से जो छिप रहा<br />वह राम है।<br /><br /> तारकों में झिलमलाता झिलमिलाता जो सदा<br />वह राम है।<br /><br /> बादलों से सिंधु तक जो बह रहा<br />वह राम है<br />\मौन रह कर जो सभी कुछ कह रहा<br />वह राम है।<br /><br /> जो हमारी साँस में आ-जा रहा<br />वह राम है<br />जो धरा से व्योम तक है रम रहा<br />वह राम है।<br /><poem>
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