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"वह राम है / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

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<poem>'''वह राम है'''<br /><br />गंध बन जो फूल को महका रहा<br />वह राम है<br />पंछियों के कंठ से जो गा रहा<br />वह राम है।<br /><br />हर किसी की आँख से जो दिप रहा<br />वह राम है<br />हर किसी की आंख से जो छिप रहा<br />वह राम है।<br /><br />तारकों में झिलमलाता जो सदा<br />वह राम है।<br /><br />बादलों से सिंधु तक जो बह रहा<br />वह राम है<br />मौन रह कर जो सभी कुछ कह रहा<br />वह राम है।<br /><br />जो हमारी साँस में आ-जा रहा<br />वह राम है<br />जो धरा से व्योम तक है रम रहा<br />वह राम है।<br /><poem>
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वह राम है
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वह राम है।
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वह राम है।
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वह राम है
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जो धरा से व्योम तक है रम रहा
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वह राम है।
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21:31, 21 जून 2010 का अवतरण

गंध बन जो फूल को महका रहा
वह राम है
पंछियों के कंठ से जो गा रहा
वह राम है।
हर किसी की आँख से जो दिप रहा
वह राम है
हर किसी की आँख से जो छिप रहा
वह राम है।

तारकों में झिलमिलाता जो सदा
वह राम है।

बादलों से सिंधु तक जो बह रहा
वह राम है\
मौन रह कर जो सभी कुछ कह रहा
वह राम है।

जो हमारी साँस में आ-जा रहा
वह राम है
जो धरा से व्योम तक है रम रहा
वह राम है।