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"सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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वरना इतने तो मरासिम थे कि आते-जाते | वरना इतने तो मरासिम थे कि आते-जाते | ||
− | शिकवा-ए- | + | शिकवा-ए-जुल्मते-शब से तो कहीं बेहतर था |
− | अपने हिस्से की कोई | + | अपने हिस्से की कोई शमअ जलाते जाते |
कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना | कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना | ||
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते | फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते | ||
− | जश्न-ए- | + | जश्न-ए-मक़्तल ही न बरपा हुआ वरना हम भी |
पा बजोलां ही सहीं नाचते-गाते जाते | पा बजोलां ही सहीं नाचते-गाते जाते | ||
22:50, 21 जून 2010 के समय का अवतरण
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सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते
वरना इतने तो मरासिम थे कि आते-जाते
शिकवा-ए-जुल्मते-शब से तो कहीं बेहतर था
अपने हिस्से की कोई शमअ जलाते जाते
कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते
जश्न-ए-मक़्तल ही न बरपा हुआ वरना हम भी
पा बजोलां ही सहीं नाचते-गाते जाते
उसकी वो जाने, उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था
तुम 'फ़राज़' अपनी तरफ से तो निभाते जाते