भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कानपूर–5 / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:21, 25 जून 2010 के समय का अवतरण
ककड़ी जैसी बांहें तेरी झुलस झूर जाएंगी
पपड़ जाएंगे होंठ गदबदे प्यासे-प्यासे
फिर भी मन में रखा घड़ा ठण्डे-मीठे पानी का
इस भीषण निदाघ में तुझको आप्लावित रक्खेगा
अलबत्ता
लली, घाम में जइये, तौ छतरी लै जइये