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"पहाड़ खुश हैं - 1 / प्रदीप जिलवाने" के अवतरणों में अंतर

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13:44, 29 जून 2010 के समय का अवतरण


आदमी ने पहाड़ बनने की खूब कोशिश की
परन्तु पहाड़ ने कभी नहीं बनना चाहा
कुछ और

पहाड़ खुश हैं पहाड़ होकर ही
जैसे नदी खुश है नदी होकर
आग खुश है आग होकर
मिट्टी खुश है मिट्टी होकर
और हवा खुश है हवा होकर

बस आदमी खुश नहीं है
सिर्फ आदमी होकर

आदमी पहाड़ भी होना चाहता है
नदी भी
आग भी
मिट्टी भी
और हवा भी
यहाँ तक कि ईश्‍वर भी।

आदमी की इच्छाएँ असीम हैं
आदमी को अपनी इच्छाओं के लिए
हमेशा जगह तंग पड़ती है
उसके लिए तो ये पृथ्वी-भी
अब पड़ने लगी है कम।
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