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"राजकुमारी-1 / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>वह जा रही थी अपने घर बैठ कर रिक्शा में लगी- राजकुमारी-सी ! मैंने …)
 
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08:28, 30 जून 2010 के समय का अवतरण

वह जा रही थी
अपने घर
बैठ कर रिक्शा में
लगी- राजकुमारी-सी !


मैंने कुछ नहीं किया
मैं जल्दी में था ।
बस खुशी छ्लकी
अपने आप ।


उसने भी
देखा होगा जल्दी में,
मगर किसे-
मुझे या खुशी को ?