"कनाट सर्कस / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | जहां रतियोग की कामना में दत्तचित्त | ||
+ | विन्डोशापिंग के बहाने परिक्रमारत | ||
+ | नितम्बों पर बकुल-ध्यान लगाए, | ||
+ | --किसी पर्वतवासिनी देवी के दर्शनार्थ | ||
+ | पर्वतारोहण करने के अंदाज़ में | ||
+ | चलते जाना, चढ़ते जाना | ||
+ | चढ़ते ही जाना, चलते ही जाना | ||
+ | साधक आवेश में--अथक, अविराम... | ||
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+ | परमात्मा से कातर याचना करते हुए | ||
+ | आज की साधना का सुफल, | ||
+ | पर, इच्छित के पर-पुरुष-संग | ||
+ | ह्रदय-विदारक सुदूर कार-गमन पर | ||
+ | ईश्वर को भरपूर कोसते हुए | ||
+ | हाथ मल-मल, रोते और पछताते हुए, | ||
+ | फिर, बिखरे मनोयोग बटोरकर | ||
+ | मध्यस्थ कामिनी-हाट लगे पार्क में | ||
+ | एक सुविधाजनक कोने में | ||
+ | जम जाना, पसर जाना | ||
+ | --टकटकी लगाए हुए | ||
+ | इतरगंध-प्रसारक देहों पर... |
13:29, 30 जून 2010 के समय का अवतरण
कनाट सरकस
कनाट सरकस--
अर्थात,
इन्द्रजालीय मार्गों के फंदे में
सर का कस जाना...
रतियोगियों की सिद्ध-भूमि है यह
जहां रतियोग की कामना में दत्तचित्त
विन्डोशापिंग के बहाने परिक्रमारत
नितम्बों पर बकुल-ध्यान लगाए,
--किसी पर्वतवासिनी देवी के दर्शनार्थ
पर्वतारोहण करने के अंदाज़ में
चलते जाना, चढ़ते जाना
चढ़ते ही जाना, चलते ही जाना
साधक आवेश में--अथक, अविराम...
परमात्मा से कातर याचना करते हुए
आज की साधना का सुफल,
पर, इच्छित के पर-पुरुष-संग
ह्रदय-विदारक सुदूर कार-गमन पर
ईश्वर को भरपूर कोसते हुए
हाथ मल-मल, रोते और पछताते हुए,
फिर, बिखरे मनोयोग बटोरकर
मध्यस्थ कामिनी-हाट लगे पार्क में
एक सुविधाजनक कोने में
जम जाना, पसर जाना
--टकटकी लगाए हुए
इतरगंध-प्रसारक देहों पर...