"बरखा--गीत / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''बरखा--गीत''') |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
'''बरखा--गीत''' | '''बरखा--गीत''' | ||
+ | |||
+ | पंख पसारे बदली रानी, | ||
+ | चुनरी ओढ़े श्यामल-धानी; | ||
+ | आंचल-पट पर दृश्य जगत के, | ||
+ | अमित कामिनी छल-छल छलके; | ||
+ | वसन जो उघारे हिय ललचाए, | ||
+ | ले अंगड़ाई सब अलसाए; | ||
+ | स्निग्ध बदन को नज़र जो छुए, | ||
+ | गड़ी शरम से खिल गए रोएँ; | ||
+ | फिर मत पूछो कैसे पिघली, | ||
+ | लगी छलकने, ज्यों नभ-बिजली..... | ||
+ | |||
+ | घुमड़े चहुंदिक घन घनघोर, | ||
+ | म्याऊं-म्याऊं बिदके वन-मोर; | ||
+ | 'पिया-पिया' पपीहा गुहारे, | ||
+ | राग कहरवा गाएँ सारे; | ||
+ | कोयल गाती कुहकुन की धुन, | ||
+ | दादुर छेड़े रेशमी गुंजन; | ||
+ | ओढ़ लिए सबने तन-मन पर, | ||
+ | झींगुर के झुन-झुन की चादर; | ||
+ | ऐसे में बूंदों की सखियाँ, | ||
+ | मल्हारी बारात ले चलीं..... | ||
+ | |||
+ | पेंग मारती चहकी गोरी, | ||
+ | रिम-झिम प्रीत की फैली डोरी; | ||
+ | गात चूमने लपके बादल, | ||
+ | आँख मारती दामिनी विह्वल; | ||
+ | आवारा हो गईं हवाएं, | ||
+ | आली! इनको कौन मनाए; | ||
+ | उमर लांघ आए तन-मन सब, | ||
+ | कौन बताए हुए जवां कब; | ||
+ | ऐसे में आ-मिल छलकाएं, | ||
+ | कण्ठ-नाद से बरखा-कजली...... |
11:31, 1 जुलाई 2010 का अवतरण
बरखा--गीत
पंख पसारे बदली रानी,
चुनरी ओढ़े श्यामल-धानी;
आंचल-पट पर दृश्य जगत के,
अमित कामिनी छल-छल छलके;
वसन जो उघारे हिय ललचाए,
ले अंगड़ाई सब अलसाए;
स्निग्ध बदन को नज़र जो छुए,
गड़ी शरम से खिल गए रोएँ;
फिर मत पूछो कैसे पिघली,
लगी छलकने, ज्यों नभ-बिजली.....
घुमड़े चहुंदिक घन घनघोर,
म्याऊं-म्याऊं बिदके वन-मोर;
'पिया-पिया' पपीहा गुहारे,
राग कहरवा गाएँ सारे;
कोयल गाती कुहकुन की धुन,
दादुर छेड़े रेशमी गुंजन;
ओढ़ लिए सबने तन-मन पर,
झींगुर के झुन-झुन की चादर;
ऐसे में बूंदों की सखियाँ,
मल्हारी बारात ले चलीं.....
पेंग मारती चहकी गोरी,
रिम-झिम प्रीत की फैली डोरी;
गात चूमने लपके बादल,
आँख मारती दामिनी विह्वल;
आवारा हो गईं हवाएं,
आली! इनको कौन मनाए;
उमर लांघ आए तन-मन सब,
कौन बताए हुए जवां कब;
ऐसे में आ-मिल छलकाएं,
कण्ठ-नाद से बरखा-कजली......