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"रचता हुआ मिटता / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>जितना रचना है उतना मिटना भी है शायद यह अलग बात है रचता हुआ मिटत…)
 
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14:07, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

जितना रचना है
उतना मिटना भी है शायद

यह अलग बात है
रचता हुआ मिटता
है नहीं जो दिखता
 
दिखता जैसे अंखुआ
बनता लकदक पेड
लेकिन बीज फिर नहीं रह जाता

कुछ मिटाना ही
कुछ रचना है !