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"बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक़ से है / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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14:09, 2 जुलाई 2010 का अवतरण
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक़ से है
यही क्या कम है के निस्बत मुझे इस खाक़
से है
ख़्वाब में भी तुझे भुलूँ तो रवा रख मुझसे
वो रवैया जो हवा का खस-ओ-खशाक़
से है
बज़्म-ए-अंजुम में क़
बा खाक की पहनी मैंने
और मेरी सारी फजीलत इसी पोशाक़
से है
इतनी रौशन है तेरी सुबह के दिल कहता है
ये उजाला तो किसी दीदा-ए-नमनाक़
से है
हाथ तो काट दिये क़ूज़ा
गरों के हमने
मौक़े
की वही उम्मीद मगर चाक़
से है