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"बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक़ से है / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक़ से है
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यही क्या कम है के निस्बत मुझे इस खाक़
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से है
  
बख़्त से कोई शिकायत है ना अफ्लाक से है<br>
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ख़्वाब में भी तुझे भुलूँ तो रवा रख मुझसे
यही क्या कम है के निस्बतत मुझे इस खाक से है<br><br>
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वो रवैया जो हवा का खस-ओ-खशाक़
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से है
  
ख़्वाब में भी तुझे भुलूँ तो रवा रख मुझसे<br>
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बज़्म--अंजुम में क़
वो रवैया जो हवा का खस--खशाक से है<br><br>
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बा खाक की पहनी मैंने
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और मेरी सारी फजीलत इसी पोशाक़
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से है
  
बज़्म-ए-अंजुम में कबा खाक की पहनी मैने<br>
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इतनी रौशन है तेरी सुबह के दिल कहता है
और मेरी सारी फजीलत इसी पोशाक से है<br><br>
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ये उजाला तो किसी दीदा-ए-नमनाक़
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से है
  
इतनी रौशन है तेरी सुबह के दिल कहता है<br>
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हाथ तो काट दिये क़ूज़ा
ये उजाला तो किसी दीदा-ए-नमनाम से है<br><br>
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गरों के हमने
 
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मौक़े
हाथ तो काट दिये कूज़गरों के हमने<br>
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की वही उम्मीद मगर चाक़
मौके की वही उम्मीद मगर चाक से है
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से है
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14:09, 2 जुलाई 2010 का अवतरण



बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक़ से है
यही क्या कम है के निस्बत मुझे इस खाक़
 से है

ख़्वाब में भी तुझे भुलूँ तो रवा रख मुझसे
वो रवैया जो हवा का खस-ओ-खशाक़
 से है

बज़्म-ए-अंजुम में क़
बा खाक की पहनी मैंने
और मेरी सारी फजीलत इसी पोशाक़
 से है

इतनी रौशन है तेरी सुबह के दिल कहता है
ये उजाला तो किसी दीदा-ए-नमनाक़
 से है

हाथ तो काट दिये क़ूज़ा
गरों के हमने
मौक़े
 की वही उम्मीद मगर चाक़
 से है