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बख़्त से कोई शिकायत है ना अफ्लाक से है / परवीन शाकिर का नाम बदलकर बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक़
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बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक़ से है
यही क्या कम है के निस्बत मुझे इस खाक़ से है
बख़्त से कोई शिकायत है ना अफ्लाक से है<br>ख़्वाब में भी तुझे भुलूँ तो रवा रख मुझसेयही क्या कम है के निस्बतत मुझे इस खाक वो रवैया जो हवा का खस-ओ-खशाक़ से है<br><br>
ख़्वाब में भी तुझे भुलूँ तो रवा रख मुझसे<br>वो रवैया जो हवा का खसबज़्म--खशाक अंजुम में क़बा ख़ाक़ की पहनी मैंनेऔर मेरी सारी फ़ज़ीलत इसी पोशाक़ से है<br><br>
बज़्मइतनी रौशन है तेरी सुबह के दिल कहता हैये उजाला तो किसी दीदा-ए-अंजुम में कबा खाक की पहनी मैने<br>और मेरी सारी फजीलत इसी पोशाक से नमनाक़से है<br><br>
इतनी रौशन है तेरी सुबह के दिल कहता है<br>ये उजाला तो किसी दीदा-ए-नमनाम से है<br><br> हाथ तो काट दिये कूज़गरों क़ूज़ागरों के हमने<br>मौके मौक़े की वही उम्मीद मगर चाक चाक़ से है</poem>